विभिन्न रामायण एवं गीता >> श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1महर्षि वेदव्यास
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भगवद्गीता की पृष्ठभूमि
कर्मयोग - नामक तीसरा अध्याय
1-8 ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्तभाव से नियत कर्म करने की
श्रेष्ठता का निरूपण।
9-16 यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण।
17-24 ज्ञानवान् और भगवान के लिये भी लोकसंग्रहार्थ कर्मों की आवश्यकता।
25-35 अज्ञानी और ज्ञानवान के लक्षण तथा राग-द्वेष से रहित होकर कर्म करने
के लिये प्रेरणा।
36-43 काम के निरोध का विषय।
ज्ञानकर्मसंन्यासयोग - नामक चौथा अध्याय
1-18 सगुण भगवान् का प्रभाव और कर्मयोग का विषय।
19-23 योगी महात्मा पुरुषों के आचरण और उनकी महिमा।
24-32 फलसहित पृथक-पृथक यज्ञों का कथन।
33-42 ज्ञान की महिमा।
कर्मसंन्यासयोग - नामक पाँचवाँ अध्याय
1-6 सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय।
7-12 सांख्ययोगी और कर्मयोगी के लक्षण और उनकी महिमा।
13-26 ज्ञानयोग का विषय।
27-29 भक्तिसहित ध्यानयोग का वर्णन।
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